बात ऐसी कर
जिसमें कुछ दम हो.
जो न सेरों से, न छटाकों से
मगर मन से तुले.
खो न जाए गूंजकर आकाश में
मन में घुले.
बात ऐसी कर जिसकी कुछ असर हो.
बात ऐसी कह जिसका ठीक सर हो, धड हो.
बात का भी होता है
निजी अस्तित्व अपना
ठीक जैसा आदमी का .
बात लेती जन्म, जीती है और मरती है.
कफ़न देकर दुनिया उसे दफ़न करती है.
बात चलती है सड़क में और गली में
बात चलती है भँवर में, कली में.
जा रही है इस नजर से उस नजर तक
जा रही है इस अधर से उस अधर तक.
बात चलती है भीड़ में अकेले में
हाट, पनघट, घाट, मेले, तमाशों में
मंदिर में, मस्जिद में, मकानों में
दफ्तरों में, कारखानों में, खदानों में
महल, मरघट, मजारों में.
बात चलती है मंडियों से मंडियों तक
द्वार तक जाती हुई पगदंडियों तक.
बात चलती है अगर उसको चलाओ
बात जलती है अगर उसको जलाओ
अंधेरे में जिस तरह जलती मशाल
अंधेरों को जिस तरह ढलती मशाल .
बात में भी यही तासीर, उसमें शक नहीं है
बात की ऑंखें मगर अपलक नहीं है.
बंद हो जाए अगर तुम धूल झोंको
फूट जाएगी अगर तुम शूल भोंको.
बात अंधी भी चलेगी, पर नहीं ज्यादा समय तक
अगर तुम चाहो, तुम्हारी बात चल सकती है प्रलय तक.
बात को भी अमरत्व देना, है नहीं आसान लेकिन
रक्त से अपने लिखेगा जो ह्रदय की बात, मन का गान,
गान उसका, बात उसकी स्वस्थ होगी
और होगी स्वस्थ तो जीवित रहेगी
आदमी के ह्रदय में निज घर बसाकर
मौत की हर चढाई का सामना कर
पीढियाँ दर पीढियाँ जीती रहेँगी
आदमी की स्नेह भीनी भावना पर.
स्वस्थ होने के लिए लेकिन
सफाई और सरलता शर्तें पहली.
अलंकारों से दबाकर व्यर्थ मत कर दो रुपहली और सुनहली
अगर खुद है सलोनी, मन हरेगी ही
अगर खुद है लुभानी तो मन भरेगी ही.
शर्त इतनी कि
वह सीधी हो सरल हो जो कलेजे में उतर जाये
जिंदगी में ल्हास और उल्हास लाए
घास पर बनकर हिरन सी या पंछियों सी चहचहाए
लहलहाकर फसल जैसी जो सुनें वह समझ जाए.
हो अगर संघर्ष
तेरी बात बन जाए गीता
शांति में, सुख में, कही हो वंदना की जो पुनीता.
अर्चना की घडी में युग का भजन हो
बात ऐसी कर जिसमें कुछ वजन हो.
वजन का मतलब कि बोलने के पहले, बात मन में खूब तोलो
हो नहीं जब तक जरूरत सख्त, अपना मुँह न खोलो.
एक मुँह है कान दो है
इसलिए यह साफ है
तुम दो सुनो तब एक बोलो
बात मन में खूब तोलो.
यह नियम है
नियम का अपवाद भी है.
जुल्म के, अन्याय के पल में
कभी भी चुप न रहना, चुप न सहना.
जुल्म का प्रतिरोध करने के लिए बोलो बराबर
ज्वालामुखी उदगार मुख खोलो सरासर
जोर से बोलो कि जिससे जुल्म का दिल दहल जाए
और गाफिल हो जहाँ भी आदमी, वह संभल जाए.
बात यह गंभीर, बातों में नहीं उसको उड़ाओ
बात बनती है अगर उसको बनाओ
टूट जाती है जरा सी सख्तियों में
और यही होता है सदा कम्बख्तियों में
क्यों कि
बात होती है बहुत कोमल, बहुत सुकुमार, बे ऐ दमनवाली
बात का अच्छा नहीं है बिगडना.
बात बन जाए अगर तो बात क्या है
पर नहीं बनती कभी भी बात
बातें बनाने से और देवी देवता रिझाने से.
बात बन सकती है, नहीं शक उसमें,
बात के पीछे अगर हो ह्रदय निश्छल
एक गहराई सरल, ईमानदारी, प्यार का बल.
है नहीं यदि प्यार मन में
व्यर्थ विश्वामित्र की सी हर तपस्या.
प्यार से सबको गले अपने लगा लो
गैर कोई रह न जाए, बैर को जड में मढ़ा दो.
बात में अपना
वरद ह्रदय अपना
अपनी सच्चाई डाल कर देखो,
पराया भी स्वजन हो
बात ऐसी कर जिस में कुछ वजन हो.