खुले नयन से सपने देखो, बंद नयन से अपने.
अपने तो रहते हैं भीतर, बाहर रहते सपने.

नाम रूप की भीड़ जगत में, भीतर एक निरंजन
सुरति चाहिए अंतर्दृक को, बाहर दृक को अंजन.

देखे को अनदेखा कर के अनदेखे को देखा

क्षर लिख लिख तू रहा निरक्षर, अक्षर सदा अलेखा.