बाढ़ की संभावनाएँ सामने है
और नदियों के किनारे घर बने हैं.

चीड़ बन में आँधियों की बात मत कर
इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं.

इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं है
जिस तरह टूटे हुए ये आयने हैं.

आप की कालीन देखेंगे किसी दिन
इस समय तो पाँव कीचड में सने हैं.

जिस तरह चाहो बजा लो इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं.

अब तडपती सी गजल कोई सुनाएँ
हमसफ़र ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं.